मकर संक्रांति : धर्म और कर्म के चिंतन का त्योहार

by Rasmahotsav
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मकर संक्रांति का त्योहार हमारे विविधतापूर्ण भारत की संस्कृति का सबसे अच्छा उदाहरण है। यह त्योहार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने का त्योहार है। हमारे आध्यात्मिक परिवर्तन और आत्मनिरीक्षण का त्योहार है। जो हमें नकारात्मक कर्म छोड़ सकारात्मक परिवर्तन को अपनाने और धर्म से जुड़े रहने के लिए प्रोत्साहित करता है। आइए संक्रांति के डोर से जुड़ी हुई हमारे कर्म और धर्म की परिभाषा को समझें।

कर्म:

हम मनुष्य को यह जानना जरूरी है कि, हमारे कर्मों के परिणाम होते हैं, चाहे वो अच्छे हो या बुरे। मकर संक्रांति का त्योहार, हमारे पिछले कर्म और उनके अच्छे या बुरे फल पर चिंतन करने का समय है। जिससे हम नकारात्मकता को छोड़, सकारात्मक परिवर्तन की ओर बढ़ सके। हमारी जिम्मेदारियों को पहचानकर, बिना विचलित हुए सकारात्मक कदम उठा सके। आइए जानते हैं मकर संक्रांति के बारे में अन्‍य खास बातें। इस पर्व का महत्‍व और मान्‍यताएं क्‍या हैं।

धर्म एवं कर्तव्य :

हमे एक उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने के लिए और अपने कर्तव्य को पूरा करने के लिए हमे हमारे धर्म को पहचानना बहुत जरूरी है। संक्रांति हमे आत्मनिरीक्षण के माध्यम से धर्म के साथ जुड़े रहने और दुनिया मे अपनी भूमिका को पहचानने को प्रोत्साहित करते है। धर्म के साथ जुडने से हमारा आध्यात्मिक विकास होता है और हमे ज्ञान की प्राप्ति होती है।

अनंत श्री विभूषित जगद्गुरु श्री प्रियदर्शी जी महाराज द्वारा रचित, अभूतपूर्व ग्रन्थ ‘श्रीकृष्ण चरित मानस’ (रसायन महाकाव्य) में बताया गया है की, कैसे हमारे कर्म अपने धर्म यानी कर्तव्य को समझने में हमारी सहायता करते हैं। अपने कर्म का चिंतन करने से अपने उद्देश्य और जिम्मेदारियों की हमें नए सिरे से पहचान होती है। अपने धर्म के मार्ग पर चलने से हम सकारात्मक कर्म करते जाते हैं, निस्वार्थ भाव से कर्म करते जाते हैं। आइए इस मकर संक्रांति को आत्म चिंतन कर अपने कर्म और धर्म को समझें और अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने की ओर एक कदम बढ़ाएं।

आलेख : डा. श्री कृष्ण किंकरजी महाराज

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